अजमेर। अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में शनिवार देर रात मारपीट और हंगामे के बाद भगदड़ मच गई। सालाना उर्स में छठी की रात के आयोजन के दौरान यह हंगामा हुआ। पुलिस का कहना है कि नारेबाजी के चलते बरेलवी और खादिम आपस में भिड़ गए। पुलिस ने किसी तरह मामला शांत कराया। शांतिभंग के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी किया गया है।
फिलहाल दरगाह एरिया में माहौल शांतिपूर्ण है। बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात है। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक शनिवार रात 2 बजे के बाद शाहजहांनी मस्जिद में बैठे बरेलवियों के एक ग्रुप की ओर से नारेबाजी शुरू की गई। वहीं, दरगाह के खादिमों ने नारेबाजी का विरोध किया तो दोनों ग्रुप आपस में उलझ गए और मारपीट शुरू हो गई।
मारपीट होते देख वहां मौजूद हजारों जायरीनों के बीच अफरा-तफरी मच गई और भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई। हालात ये हो गए कि भीड़ कंट्रोल करने के लिए लगाए गए वॉलंटियर्स भी मस्जिद की दीवार कूदकर भाग गए। इस पूरी घटना का एक वीडियो भी सामने आया है जिसमें खादिम मस्जिद में घुसते दिख रहे हैं।
अजमेर दरगाह में 811वें सालाना उर्स का 22 जनवरी से आयोजन किया जा रहा था। यहां देशभर से जायरीन पहुंचे। आधिकारिक रूप से उर्स का रविवार को समापन हो गया। हालांकि इसके बाद भी बड़ी संख्या में जायरीन अजमेर में मौजूद हैं।
दरगाह से जुड़े जानकारों का कहना है कि खादिमों (दरगाह में जियारत कराने वाले) और बरेलवियों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। दरअसल, बरेली के मुसलमानों को बरेलवी कहा जाता है। यह दरगाह में आकर अपने गुरु ताजू सरिया का गुणगान करते हैं। वे अपने गुरु की शान में 'बस्ती-बस्ती करिया करिया... ताजू सरिया ताजू सरिया' का नारा लगाते हैं।
दरगाह में 2018 में भी इस तरह की नारेबाजी को लेकर हंगामा हुआ था। इस मामले की शिकायत अंजुमन कमेटी की ओर से प्रशासन को दिए पत्र में भी की गई थी। उससे पहले जगह-जगह पोस्टर लगाकर अपील की गई थी कि ख्वाजा साहब की शान में ही नारे लगाए जाएं।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक जब हंगामा हुआ तो महफिल खाने में दरगाह दीवान की सदारत में महफिल जारी थी। हालांकि जब तक दरगाह दीवान गुस्ल (मजार को गुलाब जल, इत्र, केवड़ा से धोना) के लिए वहां पहुंचे, पुलिस ने हंगामे पर काबू पा लिया था। इसलिए भीड़ अधिक उग्र नहीं हुई।
दरगाह थाना प्रभारी अमर सिंह ने बताया कि नारेबाजी की सूचना मिलते ही वह मौके पर पहुंच गए थे। दोनों पक्षों को समझाया गया। इस दौरान धक्का-मुक्की भी हुई, घटना के वीडियो क्लिपिंग के आधार पर लाल पगड़ी वाले संदिग्ध की तलाश की जा रही है। एक युवक को शांतिभंग करने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया है। हालांकि अभी तक किसी भी पक्ष ने रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई है।
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अडाणी ग्रुप बोला-हिंडनबर्ग रिपोर्ट भारत पर हमला, आरोप झूठे, हिंडनबर्ग बोला- राष्ट्रवाद की आड़ में धोखाधड़ी ना छिपाएं
मुंबई। अडाणी ग्रुप ने 413 पन्नों के जवाब में हिंडनबर्ग की रिसर्च और उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। तस्वीर में ग्रुप के मालिक गौतम अडाणी। - फाइल फोटो
गौतम अडाणी समूह ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को भारत पर साजिश के तहत हमला बताया है। ग्रुप ने 413 पन्नों का जवाब जारी किया। इसमें लिखा है कि अडाणी समूह पर लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं। ग्रुप ने यह भी कहा कि इस रिपोर्ट का असल मकसद अमेरिकी कंपनियों के आर्थिक फायदे के लिए नया बाजार तैयार करना है।
हिंडनबर्ग ने 24 जनवरी को एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें अडाणी ग्रुप पर धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे बड़े आरोप लगाए गए थे।
रिपोर्ट जारी होने के बाद गौतम अडाणी की नेटवर्थ 10% कम हो गई। फोर्ब्स के मुताबिक, अडाणी को नेटवर्थ में 1.32 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।
अमीरों की लिस्ट में अडाणी चौथे नंबर से खिसकर 7वें पर आ गए थे। 25 जनवरी को उनकी नेटवर्थ 9.20 लाख करोड़ थी, जो 27 जनवरी को 7.88 लाख करोड़ रुपए पर आ गई थी।
अडाणी समूह ने जवाब में लिखा कि यह रिपोर्ट किसी खास कंपनी पर किया गया बेबुनियाद हमला नहीं है, बल्कि यह भारत पर किया गया सुनियोजित हमला है। यह भारतीय संस्थानों की आजादी, अखंडता और गुणवत्ता पर किया गया हमला है। यह भारत के विकास की कहानी और उम्मीदों पर हमला है।
समूह ने कहा कि यह रिपोर्ट गलत जानकारी और आधे-अधूरे तथ्यों को मिलाकर तैयार की गई है। इसमें लिखे गए आरोप बेबुनियाद हैं और बदनाम करने की मंशा से लगाए गए हैं। इस रिपोर्ट का सिर्फ एक ही उद्देश्य है- झूठे आरोप लगाकर सिक्योरिटीज के मार्केट में जगह बनाना, जिसके चलते अनगिनत इंन्वेस्टर्स को नुकसान हो और शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग बड़ा आर्थिक फायदा उठा सके।
अडाणी समूह ने अपने जवाब में हिंडनबर्ग की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए। ग्रुप ने कहा कि जब अडानी समूह का IPO लॉन्च होने वाला है, जो कि देश का सबसे बड़ा IPO होगा, तो उससे ठीक पहले ऐसी रिपोर्ट जारी करके हिंडनबर्ग ने अपनी बदनीयत का सबूत दिया है।
अडाणी ग्रुप ने कहा कि हिंडनबर्ग ने यह रिपोर्ट लोगों की भलाई के लिए नहीं, बल्कि अपने स्वार्थ के लिए जारी की है। इसे जारी करने में हिंडनबर्ग ने सिक्योरिटीज एंड फॉरेन एक्सचेंज लॉ का भी उल्लंघन किया है। न तो यह रिपोर्ट स्वतंत्र है, न निष्पक्ष है और न ही सही तरह से रिसर्च करके तैयार की गई है।
अडाणी ग्रुप के रिस्पॉन्स पर हिंडनबर्ग ने भी जवाब दिया है। हिंडनबर्ग ने कहा, "धोखाधड़ी पर इस तरह के जवाब या राष्ट्रवाद का पर्दा नहीं डाला जा सकता है। अडाणी ग्रुप हमारी रिपोर्ट को भारत पर सोचा-समझा हमला बता रहा है। अडाणी ग्रुप अपने और अपने चेयरमैन की बढ़ती हुई आय को भारत के विकास के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है। हम इससे सहमत नहीं हैं।
हम मानते हैं कि भारतीय लोकतंत्र भिन्नताओं को समेटे हुए है। भारत एक उभरती हुई सुपर पावर है, जिसका शानदार भविष्य है। हम यह मानते हैं कि भारत के भविष्य को अडाणी ग्रुप ने पीछे खींच रखा है। जो खुद को देश के झंडे में लपेट कर लूट मचा रहा है। हम मानते हैं कि धोखा... धोखा ही होता है। भले ही यह दुनिया के सबसे ज्यादा अमीरों में शामिल किसी शख्स ने ही क्यों न किया हो। हमने 88 सवाल अपनी रिपोर्ट में पूछे थे और अडाणी ग्रुप इनमें से 62 सवालों के सही तरह से नहीं दिए हैं। इसने हमारी रिसर्च को दरकिनार करने की कोशिश की है।"
हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी ने रिपोर्ट में अडाणी ग्रुप पर कई दशकों से मार्केट मैनिपुलेशन, अकाउंटिंग फ्रॉड और मनी लॉन्ड्रिंग करने का आरोप लगाया था। इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया था कि अडाणी ग्रुप की सभी प्रमुख लिस्टेड कंपनियों पर काफी ज्यादा कर्ज है और ग्रुप की सभी कंपनियों के शेयर 85% से ज्यादा ओवर वैल्यूड हैं।
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मंदिर में 300 दलितों को मिली एंट्री:80 साल पूजा करने से रोका गया
चेन्नई। तमिलनाडु में अनुसूचित जाति के 300 लोगों को मंदिर में पूजा करने का मौका दिया गया। इन लोगों के लिए ये ऐतिहासिक कदम है, क्योंकि तिरुवन्नामलाई जिले के इस मंदिर में इन्हें जाने से 80 साल से रोका जा रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये मुद्दा एक सम्मेलन के दौरान सामने आया, जहां कई समुदाय, कलेक्टर और जिला प्रशासन की बैठक में फैसला लिया गया। हालांकि, अब भी गांव में 12 विरोधी समूह इसके खिलाफ हैं, इसलिए मंदिर के बाहर भारी पुलिस बल तैनात हैं, ताकि स्थिति तनावपूर्ण न हो जाए।
थेनमुडियानूर गांव में लगभग 500 अनुसूचित जाति के परिवार रहते हैं। इस समुदाय को दशकों से 200 साल पुराने मंदिर में जाने से रोका जा रहा था। इस समुदाय को मंदिर में जाने से रोकने वाले समुदाय का कहना है कि जो परंपरा दशकों पहले से चली आ रही है, उसे बदलने की जरूरत नहीं है। करीब 750 लोगों विरोध में मंदिर को सील करने की मांग कर रहे हैं।
अनुसूचित जाति के 15 से 20 परिवार मंदिर में पूजा करने के लिए आगे आए हैं। पुलिस का कहना है कि यह एक नई शुरुआत हो सकती है। इस तरह से समुदाय के लोगों का आना-जाना शुरू हो जाएगा। साथ ही यह कदम सांप्रदायिक विभाजन को खत्म कर सकता है।
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BBC डॉक्यूमेंट्री बैन पर SC में सुनवाई 6 फरवरी को:याचिकाकर्ता ने कहा- बैन का फैसला मनमाना
नई दिल्ली। PM मोदी पर बनी BBC डॉक्यूमेंट्री "इंडिया: द मोदी क्वेश्चन" पर लगा बैन हटाने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। याचिका एडवोकेट एमएल शर्मा ने लगाई है। इसमें कहा गया है कि जनता के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए डॉक्यूमेंट्री पर लगी रोक हटा दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट में BBC की डॉक्यूमेंट्री पर लगे बैन को हटाने की मांग करने वाली याचिका पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने इसे सुप्रीम कोर्ट की समय की बर्बादी बताया है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा- इस तरह वे सर्वोच्च न्यायालय का कीमती समय बर्बाद करते हैं, जहां हजारों आम नागरिक न्याय के लिए तारीखों का इंतजार कर रहे हैं।
जनहित याचिका में दावा किया गया है कि 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' नामक डॉक्यूमेंट्री में 2002 के गुजरात दंगों और उनमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका की जांच की गई है। जब दंगे भड़के थे, तब PM मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
याचिका में यह भी कहा गया है कि डॉक्यूमेंट्री में दंगे रोकने में नाकामयाब रहे जिम्मेदारों से जुड़े कई फैक्ट्स हैं। हालांकि, सच्चाई सामने आने के डर से इसे सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021 के नियम 16 के तहत बैन किया गया है। रिकॉर्ड किए गए फैक्ट्स भी सबूत हैं और इन्हें पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसे न्याय नहीं मिला है।
याचिका में गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार लोगों की जांच की भी मांग की गई है। एमएल शर्मा ने कहा है कि BBC डॉक्यूमेंट्री के दोनों एपिसोड और BBC के रिकॉर्ड किए गए सभी ओरिजनल फैक्ट्स की जांच करें। साथ ही गुजरात दंगों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी तरह से जिम्मेदार या शामिल आरोपियों के खिलाफ IPC की धारा 146, 302, 376, 425 और 120-बी और के तहत उचित कार्रवाई करें।
याचिकाकर्ता एमएल शर्मा ने कहा है कि याचिका दायर करने का कारण 21 जनवरी 2023 को सामने आया, जब IT नियम 2021 के नियम 16 को लागू करते हुए जनता को गुजरात दंगों का खुलासा करने वाली BBC डॉक्यूमेंट्री देखने पर रोक लगा दी थी।
यह बैन संविधान के आर्टिकल 19 (1) (ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन के बराबर है।
इस मामले से जुड़ी एक और याचिका एडवोकेट सीयू सिंह ने भी दायर की है, जिसमें सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार ने बैन लगाने के लिए आपातकालीन शक्तियों का प्रयोग किया है। डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के लिए छात्रों को यूनिवर्सिटी से निकाला जा रहा है।