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मां बगलामुखी मंदिर में नौ दिनों में लाखों श्रद्धालु टेकेंगे मत्था, तांत्रिकों का रहेगा जमावड़ा

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नलखेड़ा। आगर जिले से 35 किलोमीटर दूर नलखेड़ा में विश्व प्रसिद्ध पीतांबरा सिद्धपीठ मां बगलामुखी के मंदिर में आज से बड़ी संख्या में भक्तों का आगमन शुरू हो गया है। नवरात्र के नौ दिनों में लाखों श्रद्धालु मत्था टेकने पहुंचेंगे। यहां नौ दिवसीय निशुल्क भंडारे का भी आयोजन भी किया जा रहा है। मां का दरबार तंत्र साधना के प्रमुख स्थलों में शामिल है।
यह है मान्‍यता-उज्जैन के बाद नलखेड़ा स्थित मां बगलामुखी मंदिर का नाम आता है। मान्यता यह भी है कि माता बगलामुखी की मूर्ति स्वयंभू है। मंदिर परिसर में 16 खंभों वाला सभामंडप है जो 252 साल पहले संवत 1816 में पंडित ईबुजी दक्षिणी कारीगर श्री तुलाराम ने बनवाया था। इसी सभा मंडप मे मां की और मुख करता एक कछुआ है मंदिर बताया जाता है कि ईस्वी सन् 1816 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। इस शक्तिपीठ की स्थापना महाभारतकाल में हुई थी।
मंदिर में तंत्र साधना के साथ यहां कई तरह के यज्ञ, हवन और ऐसे अनुष्ठान होते हैं, जो आम मंदिरों में नहीं होते। यहां शत्रु के नाश, चुनाव में जीत और कोर्ट केस के निपटारे के लिए विशेष पूजन होता है।बगलामुखी मंदिर महाभारत कालीन है। मां बगलामुखी का वर्णन कालीपुराण में मिलता है। वर्ष की दोनों नवरात्र शारदेय और चैत्र में मंदिर में देश-विदेश से भक्तों का बड़ी संख्या में आगमन होता है।
दोनों नवरात्र में तंत्र साधना के लिए तांत्रिकों का जमावड़ा भी यहां लगा रहता है। मंदिर में त्रिशक्ति मां विराजित है। मध्य में मां बगलामुखी, दाएं मां लक्ष्मी तथा बाएं मां सरस्वती हैं। भगवान कृष्ण के कहने पर ही कौरवों पर विजय प्राप्त करने के लिए पांडवों ने यहां मां बगलामुखी की आराधना की थी। मां की साधना-आराधना से अनंत गुना फल की प्राप्ति होती है। जब कभी शत्रु का भय हो तो बगलामुखी की साधना-आराधना आराधक को फलदायी रहती है। वहीं मां की आराधना से शत्रु का स्तंभन भी होता है।
मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। शास्त्र के अनुसार इस देवी की साधना-आराधना से शत्रुओं का स्तंभन हो जाता है। यह साधक को भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है। माता बगलामुखी का पूजन यूं तो आम लोग भी करते हैं, लेकिन माता की विशेष साधना तांत्रिक विधि से होती है। इसके लिए नियमों में रहकर पूजन किया जाना जरूरी है। आम भक्त ही नहीं, यहां न्यायधीश, राजनेता, फिल्म अभिनेता-अभिनेत्री जैसे विशिष्ट भक्त भी आते हैं, जो अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए विशेष हवन-अनुष्ठान यहां करते हैं।
भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं, जो दतिया, कांगड़ा हिमाचल एवं नलखेड़ा जिला आगर मालवा में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है। मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे खास है। मप्र में तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का एकमात्र यह मंदिर आगर जिले की तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। मंदिर में कई देवी-देवताओं का वास है। अहाते में स्थित काल भैरव की चमत्कारी मूर्ति स्थापित है, जो उज्जैन स्थित काल भैरव के समान मद्यपान करते हैं। मंदिर के अहाते में ही वीर हनुमान, राधाकृष्ण व महाकाल मंदिर भी स्थित है। सिद्धपीठ मां बगलामुखी नलखेड़ा इतिहास के झरोखे में दीप स्तंभ उज्जैन स्थित मां हरसिद्धि मूर्ति के सम्मुख निर्मित है। यहां कई फीट ऊंचा दीप स्तंभ बना हुआ है, जो विशेष अवसरों पर जगमगाता है।
दीप स्तंभ अति प्राचीन मंदिरों में ही पाए जाते हैं। सम्राट विक्रमादित्य की आराध्या मां हरसिद्धि के मंदिर की प्रतिकृति इस मंदिर के गर्भगृह की दीवारों की लगभग पांच फीट चौड़ाई एवं कारीगरी भी इस बात के प्रमाण हैं कि यह मंदिर ईसा से एक शताब्दी पूर्व सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में निर्मित हुआ होगा। लखुंदर नदी प्राचीन नाम लक्ष्मणा मंदिर परिसर के पृष्ठ भाग की दीवार से सटकर बहती है। मानों माता के चरणों को पखारने के लिए ही वह यहां प्रवाहित हो रही है।

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राजराजेश्वरी माता मंदिर में 54 सालों से जल रही अखंड ज्योति
शाजापुर। शारदीय नवरात्र का आगाज हो गया है। माता जी के पंडाल भी सज गए हैं। रविवार को घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह नौ बजकर 27 मिनिट से शुरू होगा। कलश यात्रा के साथ दुर्गा मां और शुभ मुहूर्त में घट स्थापना वैदिक मंत्र पूजा विधि के साथ पांडालों,मंदिरों सहित घर-घर में विराजी
अब नौ दिन के लिए क्षेत्र में वातावरण भक्तिमय हो जाएगा और लोग माता की भक्ति में डूबे रहेंगे। मंदिरों और पंडालों में सुबह शाम आरती, छप्पन भोग और जागरण इत्यादि कार्यक्रम का आयोजन नौ दिन में लोगों को देखने को मिलेगा। घर-घर में कन्या भोजन, हवन,पाठ पूजा लोग करेंगे।
शाजापुर का विश्व प्रसिद्ध राजराजेश्वरी माता मंदिर परिसर आकर्षक विद्युत सज्जा से जगमगाने लगा है। चैत्र नवरात्रि को लेकर मंदिर में तैयारियां की गई हैं और माता के दरबार को सजाया गया है। मां राजराजेश्वरी के दरबार में नौ दिनों तक माता की आराधना होगी। श्रद्धालु धार्मिक आयोजनों का आनंद भी ले सकेंगे। मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली है और यहां दूर-दूर से कई लोग आते हैं और माता के दर्शन कर मेले का भी आनंद उठाते हैं। मंदिर परिसर में मेला भी लग चुका है,मेले के लिए व्यापारी कई दिनों पहले ही अपना सामान लेकर यहां आ गए थे।
मां राजराजेश्वरी मंदिर के पुजारी पं.आशीष नागर ने बताया कि माता के दरबार में 54 सालों से अखंड ज्योति जल रही है। दादाजी मंदिर के पुजारी स्व. पं. हरिशंकर नागर ने बताया था कि मां राजराजेश्वरी के दरबार में देश की चारों पीठों के शंकराचार्यों ने दर्शन करने के बाद इसे 52वां गुप्त शक्तिपीठ बताया था।
पंडित नागर ने बताया कि मां राजेश्वरी मंदिर का जीर्णोद्धार राजा भोज के कार्यकाल में 1060 में हुआ था। पूर्व में माता के गर्भगृह के ठीक बाहर के स्थान पर शनिदेव मानकर पूजन किया जाता था। 1968-1969 से अखंड ज्योत जल रही है। दादाजी पं. हरिशंकर नागर को स्वप्न आया था कि यहां शिव परिवार की प्रतिमा है। वर्षों पहले मंदिर के विस्तार के दौरान की गई खोदाई में माता के चरण, चिमटा, त्रिशूल मिला था।
स्कंद पुराण में इसे शक्तिपीठ बताया गया है। मान्यता है कि शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से ही लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मां सती के साथ भोलेनाथ सहित शिव परिवार मूर्ति के रूप में मिले थे। मंदिर में 54 सालों से अखंड ज्योत जल रही है। विश्व के 52 स्थानों पर शक्तिपीठ मंदिर स्थापित हैं।
मान्यता है कि राजा दक्ष ने जब हवन किया तो उस समय मां सती व भोलेनाथ को नहीं बुलाया गया था। जब माता सती यज्ञ में गई तो उनके पिता राजा दक्ष ने भोलेनाथ का अपमान किया। पति का अपमान होने के कारण माता सती अग्निकुंड में कूद गईं। इसके पश्चात भोलेनाथ माता सती को गोद में लेकर घूमते रहे। इस दौरान माता सती के एक-एक अंग गिरते रहे। शाजापुर में मां का दाहिना चरण गिरा था, जो आज भी मंदिर के गर्भगृह में विद्यमान हैं। मां राजराजेश्वरी का मंदिर चीलर नदी के तट पर है। तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है।
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सिंधिया के चुनाव लड़ने की अटकलों के बीच कांग्रेस ने शिवपुरी से अपने दिग्गज को उतारा
भोपाल। लंबे इंतजार के बाद नवरात्रि के पहले दिन कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट में 144 नाम हैं। कांग्रेस ने अपनी लिस्ट में 69 मौजूदा विधायकों को टिकट दिया है। पहली लिस्ट में कई हाई प्रोफाइल चेहरे हैं तो कई सीनियर नेताओं के टिकट काट भी दिए गए हैं। हालांकि लिस्ट में ज्यादातर पुराने नाम हैं। कांग्रेस से सबसे बड़ा चौंकाने वाला फैसला शिवपुरी विधानसभा सीट को लेकर किया है। यहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम की अटकलों से बीच कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी है।
कांग्रेस ने झाबुआ विधानसभा सीट से कांतिलाल भूरिया की जगह उनके बेटे विक्रांत भूरिया को टिकट दिया है। मौजूदा समय में कांतिलाल भूरिया यहां से विधायक हैं। कांग्रेस ने कटंगी विधायक टामलाल सहारे और गुनौर विधायक शिवदयाल बागरी के टिकट काटे गए हैं। वहीं, गोटेगांव विधानसभा सीट से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति का टिकिट भी कटा है।
कांग्रेस की लिस्ट में चौंकाने वाला फैसला केपी सिंह को लेकर किया गया है। पिछोर विधानसभा सीट से लगातार चुनाव जीतने वाले केपी सिंह को कांग्रेस ने इस बार शिवपुरी से उम्मीदवार बनाया है। वहीं, पिछोर सीट से शैलेन्द्र सिंह को टिकट दिया गया है। शिवपुरी विधानसभा सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया के चुनाव लड़ने की अटकलें लगाई जा रही हैं। शिवपुरी विधानसभा सीट से अभी यशोधरा राजे सिंधिया विधायक हैं। यशोधरा राजे सिंधिया ने इस बार चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। 144 नामों में ओबीसी वर्ग के 39 प्रत्याशी हैं। अनुसूचित जाति वर्ग के 22 और अनुसूचित जनजाति वर्ग के 30 उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है। पहली लिस्ट में कांग्रेस ने 19 महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। बता दें कि राज्य में 17 नवंबर को वोटिंग होगी और 3 दिसंबर को रिजल्ट घोषित होगा।