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पूर्व IPS अधिकारी संजीव भट्ट को 20 साल कठोर कारावास, 2 लाख रुपये का जुर्माना

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1996 के एनडीपीएस मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को कोर्ट ने कड़ी सजा सुनाई है. गुजरात के बनासकांठा जिले के पालनपुर द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने भट्ट को 20 साल कठोर कारावास की सजा सुनाई है. साथ ही उन पर 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है.
मालूम हो कोर्ट ने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी संजीव भट्ट को 1996 के मादक पदार्थ जब्ती मामले में बुधवार को दोषी करार दिया दिया था. आपराधिक मामले में भट्ट की यह दूसरी सजा है. इससे पहले उन्हें 2019 में जामनगर अदालत द्वारा हिरासत में मौत के मामले में दोषी पाया गया था.
पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट पर आरोप लगा था कि उन्होंने बनासकांठा के एसपी रहते हुए पालनपुर के एक होटल में 1.5 KG अफीम रखकर एक वकील को फंसाया था. कोर्ट ने भट्ट को राजस्थान के एक वकील को झूठा फंसाने का दोषी ठहराया. भट्ट को 2015 में भारतीय पुलिस सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था.
क्या है 1996 का एनडीपीएस मामला-दरअसल जिला पुलिस ने राजस्थान के वकील सुमेरसिंह राजपुरोहित को 1996 में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टांसेस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था. जिला पुलिस ने यह दावा किया था कि उसने पालनपुर के एक होटल के उस कमरे से मादक पदार्थ जब्त किया था जहां वकील राजपुरोहित रह रहे थे. पूर्व पुलिस निरीक्षक आई बी व्यास ने मामले की गहन जांच का अनुरोध करते हुए 1999 में गुजरात हाई कोर्ट का रुख किया था.
संजीव भट्ट को राज्य के अपराध जांच विभाग (सीआईडी) ने सितंबर 2018 में एनडीपीएस अधिनियम के तहत मादक पदार्थ मामले में गिरफ्तार किया था और तब से वह पालनपुर उप-जेल में हैं. पिछले साल, पूर्व आईपीएस अधिकारी ने 28 साल पुराने मादक पदार्थ मामले में पक्षपात का आरोप लगाते हुए मुकदमे को किसी अन्य सत्र अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. हालांकि कोर्ट ने भट्ट की याचिका खारिज कर दी थी.
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गोविंदा शिवसेना शिंदे गुट में शामिल:मुंबई नॉर्थ-वेस्ट से चुनाव लड़ सकते हैं
मुंबई। बॉलीवुड एक्टर गोविंदा महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हो गए हैं। वे गुरुवार (28 मार्च) शाम करीब 5 बजे सीएम शिंदे के साथ मुंबई स्थित शिवसेना ऑफिस पहुंचे। इसके थोड़ी देर बाद उन्होंने पार्टी जॉइन कर ली।
शिवसेना जॉइन करने के बाद गोविंदा ने कहा- मैं 2004 से 2009 तक राजनीति में था। ये संयोग है कि 14 साल बाद मैं फिर से राजनीति में आया हूं। मुझ पर जो विश्वास किया गया है, मैं उसे पूरी तरह से निभाऊंगा।
शिवसेना गोविंदा को मुंबई की नॉर्थ-वेस्ट लोकसभा सीट से टिकट दे सकती है। यहां से उद्धव गुट की शिवसेना ने अमोल कीर्तिकर को अपना प्रत्याशी बनाया है। गोविंदा ने 27 मार्च को पूर्व विधायक कृष्णा हेगड़े के साथ मीटिंग की थी। इसके बाद से ही उनके चुनाव लड़ने के कयास लग रहे थे।
ये पहली बार नहीं है जब गोविंदा लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। इससे पहले उन्होंने 2004 में कांग्रेस के टिकट पर मुंबई नॉर्थ से लोकसभा चुनाव लड़ा था। उन्होंने भाजपा के राम नाइक को 48,271 वोटों से हराया था। गोविंदा 2004 से 2009 तक सांसद रहे।
महाराष्ट्र में भाजपा, शिवसेना और NCP के गठबंधन के बीच लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग फॉर्मूला लगभग तय हो गया है। सूत्रों के मुताबिक, राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से भाजपा 27 पर, शिवसेना 14 पर और NCP 5 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसकी आधिकारिक घोषणा जल्द होने की संभावना है।
इससे पहले तक कयास लगाए जा रहे थे कि राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से BJP 30 से 32 सीटों पर, शिवसेना 10 से 12 और NCP 6 से 8 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है। 6 मार्च को अमित शाह की मौजूदगी में मुंबई के सह्याद्रि गेस्ट हाउस में हुई बैठक में यह सहमति बनने की बात सामने आई थी।
वहीं, महाविकास अघाड़ी ने सीटों के बंटवारे पर अंतिम मुहर लगाने के लिए शाम 5 बजे तीनों दलों (कांग्रेस, शिवसेना UBT, NCP शरदचंद्र पवार) की बैठक बुलाई है। कल ही शिवसेना उद्धव गुट ने 17 कैंडिडेट्स का ऐलान किया था। इनमें 3 सीटों पर कांग्रेस के दावेदार टिकट का इंतजार कर रहे थे। इस ऐलान से शरद पवार नाराज हैं।
तीन सीटें ऐसी हैं, जहां उद्धव गुट और कांग्रेस के बीच विवाद गहरा गया है। सीट बंटवारे से नाराज कांग्रेस नेता सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली पहुंच गए। ये तीन सीटें हैं- मुंबई नॉर्थ-वेस्ट, मुंबई साउथ-सेंट्रल और सांगली।
मुंबई नॉर्थ-वेस्ट से शिवसेना (UBT) के अमोल कीर्तिकर को टिकट मिलने से कांग्रेस के संजय निरुपम नाराज हैं। उन्होंने कहा कि कीर्तिकर खिचड़ी स्कैम का घोटालेबाज है।
मुंबई साउथ-सेंट्रल से उद्धव ठाकरे के करीबी राज्यसभा सदस्य अनिल देसाई को टिकट दिया गया है। यहां से मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष वर्षा गायकवाड चुनाव लड़ना चाहती थीं।
वहीं, सांगली से कांग्रेस विश्वजीत कदम को खड़ा करना चाहती थी। उद्धव गुट ने यहां चंद्रहार पाटिल को टिकट दे दिया है।
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CJI को वकीलों का पत्र, 600 वकीलों ने चीफ जस्टिस से कहा- न्यायपालिका खतरे में है, दबाव से बचाना होगा
नई दिल्ली। CJI डीवाई चंद्रचूड़ को 600 से ज्यादा वरिष्ठ वकीलों के लिखे पत्र पर पीएम नरेंद्र मोदी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने गुरुवार को कहा, 'दूसरों को डराना धमकाना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति है। करीब 50 साल पहले उन्होंने बेहतर न्यायपालिका की बात कही थी।'
पीएम मोदी ने कहा कि वे बेशर्मी से अपने स्वार्थों के लिए दूसरों से प्रतिबद्धता चाहते हैं, लेकिन राष्ट्र के प्रति किसी भी प्रतिबद्धता से बचते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि 140 करोड़ भारतीय उन्हें अस्वीकार कर रहे हैं।
दरअसल, देश के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे समेत 600 से ज्यादा वरिष्ठ वकीलों ने CJI डीवाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी है। इसमें कहा गया है कि न्यायपालिका खतरे में है और इसे राजनीतिक और व्यवसायिक दबाव से बचाना होगा।
वकीलों ने चिट्‌ठी में लिखा कि न्यायिक अखंडता को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। हम वो लोग हैं, जो कानून को कायम रखने के लिए काम करते हैं। हमारा यह मानना है कि हमें अदालतों के लिए खड़ा होना होगा। अब साथ आने और आवाज उठाने का वक्त है। उनके खिलाफ बोलने का वक्त है जो छिपकर वार कर रहे हैं। हमें निश्चित करना होगा कि अदालतें लोकतंत्र का स्तंभ बनी रहें। इन सोचे-समझे हमलों का उन पर कोई असर ना पड़े।
26 मार्च को लिखी गई चिट्ठी- न्यूज एजेंसी के मुताबिक, CJI चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखने वाले 600 से ज्यादा वकीलों में हरीश साल्वे के अलावा बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन मिश्रा, अदिश अग्रवाल, चेतन मित्तल, पिंकी आनंद, हितेश जैन, उज्ज्वला पवार, उदय होल्ला और स्वरूपमा चतुर्वेदी शामिल हैं।
वकीलों ने लिखा, 'रिस्पेक्टेड सर, हम सभी आपके साथ अपनी बड़ी चिंता साझा कर रहे हैं। एक विशेष समूह न्यायपालिका पर दबाव डालने की कोशिश कर रहा है। यह ग्रुप न्यायिक व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है और अपने घिसे-पिटे राजनीतिक एजेंडे के तहत उथले आरोप लगाकर अदालतों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है।
उनकी इन हरकतों से न्यायपालिका की पहचान बताने वाला सौहार्द्र और विश्वास का वातावरण खराब हो रहा है। राजनीतिक मामलों में दबाव के हथकंडे आम बात हैं, खास तौर से उन केसेस में जिनमें कोई राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप में घिरा है। ये हथकंडे हमारी अदालतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं और लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरा हैं।
ये विशेष समूह कई तरीके से काम करता है। ये हमारी अदालतों के स्वर्णिम अतीत का हवाला देते हैं और आज की घटनाओं से तुलना करते हैं। ये महज जानबूझकर दिए गए बयान हैं ताकि फैसलों को प्रभावित किया जा सके और राजनीतिक फायदे के लिए अदालतों को संकट में डाला जा सके।
यह देखकर परेशानी होती है कि कुछ वकील दिन में किसी राजनेता का केस लड़ते हैं और रात में वो मीडिया में चले जाते हैं, ताकि फैसले को प्रभावित किया जा सके। ये बेंच फिक्सिंग की थ्योरी भी गढ़ रहे हैं। यह हरकत ना केवल हमारी अदालतों का असम्मान है, बल्कि मानहानि भी है। यह हमारी अदालतों की गरिमा पर किया गया हमला है।
माननीय न्यायाधीशों पर भी हमले किए जा रहे हैं। उनके बारे में झूठी बातें बोली जा रही हैं। ये इस हद तक नीचे उतर आए हैं कि हमारी अदालतों से उन देशों की तुलना कर रहे हैं, जहां कानून नाम की चीज नहीं है। हमारी न्यायपालिका पर अन्यायपूर्ण कार्यवाही का आरोप लगाया जा रहा है।"