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देश के इतिहास की पहली घटना, जज की टिप्पणी पर भड़के वकीलों ने तोड़फोड़ कर दी

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जबलपुर। जज की विरोधी टिप्पणी से आहत जिला अदालत के एक वकील ने शुक्रवार को आत्महत्या कर ली। इससे आक्रोशित जिला बार एसोसिएशन के वकील मृतक वकील का शव लेकर हाईकोर्ट पहुंच गए और जमकर हंगामा किया। कई अधिवक्ता और जजों के दफ्तर में तोड़फोड़ कर दी। कुछ अधिवक्ताओं के चैंबर में आग तक लगा दी। कई वकीलों का गुस्सा यहीं नहीं रुका, वकीलों ने फायर ब्रिगेड को भी हाईकोर्ट परिसर में घुसने नहीं दिया। उन्होंने सुरक्षाकर्मी और पत्रकारों के साथ भी मारपीट की। शाम तक चले हंगामे को देख क्षेत्र में भारी पुलिस बल तैनात क दिया गया था। जबलपुर के न्यायिक इतिहास में यह अब तक की सबसे बड़ी घटना बताई जा रही है।
जबलपुर हाईकोर्ट में शुक्रवार को दोपहर उस समय हंगामा हो गया। जब जयप्रकाश नगर आधार ताल में रहने वाले एक वकील ने अपने ही घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वकील का नाम अनुराग साहू बताया जा रहा है। वो थोड़ी देर पहले कोर्ट में जज की टिप्पणी से आहत होकर घर चले गया था। 32 वर्षीय अनुराग साहू जिला बार एसोसिएशन का सदस्य था। वकीलों को जब अनुराग साहू के आत्महत्या करने की सूचना मिली तो भारी संख्या में वकील उनके घर पहुंच गए और शव को लेकर हाईकोर्ट ले आए। इस दौरान कई घंटों तक हाईकोर्ट में अफरा-तफरी का माहौल था। वकील जो भी दिख रहा था उसके साथ मारपीट कर रहे थे। वकील चीफ जस्टिस के कमरे तक भी तोड़फोड़ कर दी।
वकीलों ने हाईकोर्ट के आसपास के इलाकों में भी जमकर हंगामा किया। उन्होंने वहां जाम लगा दिया। काफी देर तक वकील सड़कों पर ही जमे रहे और वहां वाहनों की लंबी-लंबी कतारें लग गई। मौके पर भारी पुलिस बल तैनात हो गया है। खबर लिखे जाने तक कई स्थानों पर वकीलों का हंगामा जारी था।
हाईकोर्ट में स्थिति को संभालने के लिए पुलिस ने हंगामा कर रहे वकीलों पर लाठीचार्ज कर दिया। प्रदर्शनकारी वकीलों ने अधिवक्ता मनीष दत्त के चैंबर समेत दूसरे वकीलों के चैंबर में भी आग लगा दी। फायर ब्रिगेड की गाड़ियां जब वहां पहुंची तो वकीलों ने घुसने नहीं दिया।
इस हंगामे में कुछ पत्रकार भी वकीलों की मारपीट का शिकार हो गए। हाईकोर्ट पहुंचे एक पत्रकार का मोबाइल तोड़ दिया। उसके पैर में भी लाठी मारी। कवरेज करने गए अन्य पत्रकारों के साथ भी मारपीट की गई।
यह है कारण
सूत्रों के मुताबिक शुक्रवार को रेप के आरोपी पुलिस अफसर संदीप अयाची की जमानत के मामले में सुनवाई हुई थी। इस मामले में वकील अनुराग साहू भी कोर्ट में उपस्थित थे। सुनवाई जज संजय द्विवेदी की कोर्ट में हुई थी। कोर्ट में लगे लेटर बॉक्स में किसी ने इस केस से जुड़े तथ्यों को लेकर चिट्ठी डाल दी। इसकी जांच को लेकर दोनों पक्षों में जमकर बहस हुई। इस पर जज की ओर से टिप्पणी की गई। इसके बाद एडवोकेट अनुराग साहू खफा होकर घर चले गए और अपने घर में फांसी लगा ली।

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कांग्रेस अध्यक्ष की रेस, मल्लिकार्जुन रेस में आगे, 30 लीडर्स उनके नॉमिनेटर बने
कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए शुक्रवार को 3 नामांकन हुए। पहला नामांकन शशि थरूर, दूसरा नामांकन झारखंड के कांग्रेस लीडर केएन त्रिपाठी और तीसरा नॉमिनेशन मल्लिकार्जुन खड़गे ने किया। इसके साथ ही तय हो गया है कि अगला अध्यक्ष गैर-गांधी ही होगा।
थरूर और त्रिपाठी के प्रस्तावकों में इक्का-दुक्का लीडर्स थे, लेकिन गांधी फैमिली की चॉइस बताए जा रहे मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रस्तावकों की लिस्ट में 30 बड़े नेताओं के नाम हैं। इनमें जी-23 के बड़े चेहरे आनंद शर्मा और मनीष तिवारी भी शामिल हैं। खड़गे के साथ नेताओं के हुजूम की तस्वीर यह साफ कर रही है कि नॉमिनेशन ही नतीजे हैं।
हाईकमान और टॉप लीडर्स के सपोर्ट से खड़गे का अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है। अगर ऐसा होता है तो खड़गे बाबू जगजीवन राम के बाद दूसरे दलित अध्यक्ष बनेंगे। जगजीवन राम 1970-71 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे। खड़गे का कांग्रेस में कद और उनके करियर के बारे में जानने के लिए यहां क्लिक करें...
मल्लिकार्जुन खड़गे: एके एंटनी, अशोक गहलोत, अंबिका सोनी, मुकुल वासनिक, आनंद शर्मा, अभिषेक मनु सिंघवी, अजय माकन, भूपिंदर हुड्डा, दिग्विजय सिंह, तारिक अनवर, सलमान खुर्शीद, अखिलेश प्रसाद सिंह, दीपेंदर हुड्डा, नारायण सामी, वी वथिलिंगम, प्रमोद तिवारी, पीएल पुनिया, अविनाश पांडे, राजीव शुक्ला, नासिर हुसैन, मनीष तिवारी, रघुवीर सिंह मीणा, धीरज प्रसाद साहू, ताराचंद, पृथ्वीराज चौहान, कमलेश्वर पटेल, मूलचंद मीणा, डॉ. गुंजन, संजय कपूर और विनीत पुनिया।
1. दिग्विजय सिंह: मैं खड़गे का प्रस्तावक
"मैं कल खड़गे जी के घर गया और पूछा कि अगर आप नॉमिनेशन कर रहे हो तो मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा। आज जानकारी मिली कि वे कैंडिडेट हैं। मैं आज फिर उनके घर गया और कहा कि आप वरिष्ठ नेता हैं, मैं आपके खिलाफ चुनाव लड़ने की बात सोच भी नहीं सकता। अब उनका इरादा चुनाव लड़ने का है तो मैं उनका प्रस्तावक बनना स्वीकार करता हूं।"
यह तस्वीर भारत जोड़ो यात्रा के दौरान 1 सितंबर को ली गई थी। जब एक प्रोग्राम के दौरान दिग्विजय इस भावभंगिमा में नजर आए। आज यह तस्वीर उनके एक बयान से मिलती-जुलती दिख रही है। आज दिग्गी ने कहा- खड़गे जी सीनियर हैं, उनके खिलाफ चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता।
यह तस्वीर भारत जोड़ो यात्रा के दौरान 1 सितंबर को ली गई थी। जब एक प्रोग्राम के दौरान दिग्विजय इस भावभंगिमा में नजर आए। आज यह तस्वीर उनके एक बयान से मिलती-जुलती दिख रही है। आज दिग्गी ने कहा- खड़गे जी सीनियर हैं, उनके खिलाफ चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता।
2. अशोक गहलोत: चुनाव अब फ्रैंडली मैच
"खड़गे अनुभवी नेता हैं। उनका चुनाव लड़ने का फैसला सही है। कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव अब फ्रैंडली मैच है। हम सभी लोग एकजुट हैं। सभी वरिष्ठ नेताओं ने खड़गे को चुनाव में उतारने का फैसला किया है। शशि थरूर ने भी कहा है कि यह एक फ्रैंडली मैच है और कांग्रेस इसमें जीतेगी।"
3. मल्लिकार्जुन खड़गे: उम्मीद है मैं जीतूंगा
"जिन्होंने आज मेरा समर्थन किया, मुझे प्रोत्साहित किया उन सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं, मंत्रियों का धन्यवाद। 17 अक्टूबर को देखते हैं, क्या नतीजा आता है। उम्मीद है मैं जीतूंगा। मैं कांग्रेस की आइडियोलॉजी से बचपन से जुड़ा हूं। 8वीं-9वीं से ही नेहरू-गांधी की विचारधारा के लिए कैंपेनिंग की है।"
शुक्रवार को नॉमिनेशन से एक दिन पहले गुरुवार को G-23 एक्टिव हो गया। यह वही ग्रुप है, जिसने पार्टी लीडरशिप में बदलाव का मुद्दा उठाया था। गुरुवार देर रात तक मीटिंग चली और इसके बाद मनीष तिवारी, गहलोत के नामों की भी चर्चा होने लगी। कहा जाने लगा कि ये भी चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन शुक्रवार को जो तस्वीर सामने आई, उसमें खड़गे के नॉमिनेशन में इस ग्रुप के सबसे मजबूत नेता यानी आनंद शर्मा और मनीष तिवारी प्रस्तावक के तौर पर मौजूद रहे।
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केरल हाईकोर्ट ने PFI पर लगाया 5.2 करोड़ का जुर्माना:कहा-भरपाई जरूरी
तिरुवनंतपुरम। केरल हाईकोर्ट ने प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और केरल के इसके पूर्व महासचिव पर 5.2 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने इन्हें आदेश दिया है कि यह राशि राज्य के गृह विभाग के पास जमा कराएं। बीते दिनों PFI के प्रदर्शनों में हुए नुकसान की भरपाई के लिए कोर्ट ने गुरुवार को यह फैसला सुनाया।
दरअसल, 22 सितंबर को PFI के ठिकानों पर NIA की रेड के बाद संगठन ने 23 सितंबर को केरल बंद बुलाया था। इस दिन मचे उपद्रव के चलते राज्य की संपत्ति को नुकसान पहुंचा था। केरल स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (KSRTC) ने इस नुकसान की अनुमानित कीमत 5.2 करोड़ आंकी थी।
KSRTC ने कोर्ट में याचिका दाखिल करके बताया था कि इस हड़ताल की उन्हें पहले से सूचना नहीं दी गई थी, जिसके चलते हड़ताल के दौरान उनकी बसें क्षतिग्रस्त हुईं और पैसेंजर्स भी बसों में नहीं बैठे। इसी संबंध में केरल हाईकोर्ट ने कहा कि संगठन को इस नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना जरूरी है।
कोर्ट ने राज्य सरकार के रवैये पर चिंता जताते हुए कहा कि सरकार ने इस हड़ताल के आयोजकों को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। इन लोगों ने गैरकानूनी प्रदर्शन किए और सड़कों को कई घंटों तक जाम रखा। यह सब तब हुआ, जब 2019 में हाईकोर्ट ने ऐसे विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ आदेश सुनाया था।
कोर्ट ने गुरुवार को कहा- केरल में PFI के पूर्व महासचिव अब्दुल सतार को हड़ताल से जुड़े सभी केस में आरोपी बनाना चाहिए। मीडिया रिपोर्ट्स से जानकारी मिली है कि 23 सितंबर को पुलिस ने हालात पर काबू पाने के लिए तब तक कोई कदम नहीं उठाया, जब तक कोर्ट ने इस मामले में दखल नहीं दिया। हमने 7 जनवरी 2019 को आदेश दिया था कि हड़ताल के उद्देश्य से कोई जुलूस, रैली या प्रदर्शन को अनुमति नहीं दी जाएगी। पुलिस ने इस आदेश के पालन को सुनिश्चित करना जरूरी नहीं समझा।'
जस्टिस एके जयशंकर नम्बियार और मोहम्मद नियास सीपी ने यह आदेश भी दिया कि इन मामलों में जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करने के दौरान मजिस्ट्रियल कोर्ट या सेशन कोर्ट को यह शर्त रखनी चाहिए कि पहले जुर्माने की राशि भरी जाएगी। बेंच ने कहा कि राज्य के नागरिकों को सिर्फ इसलिए डर में जीने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है क्योंकि उनके पास हिंसा फैलाने वाले लोगों या राजनीतिक दलों जैसे साधन नहीं है।
केंद्र सरकार ने बुधवार सुबह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, यानी PFI को 5 साल के लिए बैन कर दिया। PFI के अलावा 8 और संगठनों पर कार्रवाई की गई है। गृह मंत्रालय ने इन संगठनों को बैन करने का नोटिफिकेशन जारी किया है। इन सभी के खिलाफ टेरर लिंक के सबूत मिले हैं। केंद्र सरकार ने यह एक्शन (अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट) UAPA के तहत लिया है। सरकार ने कहा, PFI और उससे जुड़े संगठनों की गतिविधियां देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...
PFI की जड़ें 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए खड़े हुए आंदोलनों से जुड़ती हैं। 1994 में केरल में मुसलमानों ने नेशनल डेवलपमेंट फंड (NDF) की स्थापना की थी। इसके बाद इसका नाम दंगों से हत्या तक में जुड़ा। संगठन 15 साल में 20 राज्यों तक पहुंच गया।